
कछुए
– फोटो : संवाद न्यूज एजेंसी
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हरियाणा में मीठे पानी में पाए जाने वाले सॉफ्टशैल व फ्लैपशैल प्रजाति के कछुआ पर संकट छाया हुआ है। इसका मुख्य कारण जोहड़ का समाप्त होना माना जा रहा हैं। जो कछुआ बचे हुए हैं उन्हें मीट के नाम पर या दवाओं के नाम पर मारा जा रहा है। लोगों को जागरूक करने और नई पीढ़ी को इनकी जानकारी देने के लिए तिलयार झील स्थित मिनी जू में दो स्थानों पर इन कछुओं को रखा जाएगा और इनका प्रजनन कराया जाएगा।
तिलयार झील के मिनी जू में दो जगह लोगों को दिखाने के लिए रखने की तैयारी
मंडलीय वन्य प्रणाली अधिकारी शिव रावत ने बताया कि गांवों व शहरों में जोहड़ों पर कब्जा हो रहा है। इसके चलते कछुओं का प्रजनन कम हो रहा है। यहां सॉफ्टशैल व फ्लैपशैल कछुओं की प्रजाति पाई जाती थी। लेकिन दोनों ही अब खतरे में हैं। सॉफ्टशैल 30 से 35 किलो का होता है जबकि फ्लैपशैल चार से पांच किलो का होता है। वर्तमान में ये कहीं-कहीं ही मिलते हैं। यदि जोहड़ नहीं रहेंगे तो इनका विकास कैसे होगा। जो कछुए बचे हैं, उनके लिए समस्या है कि लोग इनके मीट के लिए इनको मार देते हैं। कुछ लोगों का कहना है कि टीबी के मरीज यदि कछुए का मीट खाते हैं तो वह जल्द ठीक होंगे। इस पर सख्ती से रोक लगनी चाहिए, क्योंकि टीबी की दवा मौजूद है। लोग भ्रम न पालें।
किसी जीव को बेघर करने की अनुमति नहीं धर्म
दुर्गा भवन मंदिर से ज्योतिषाचार्य पंडित मनोज मिश्र का कहना है कि कछुआ घर लाकर पालना सही नहीं है, हमारा धर्म किसी जीव को बेघर करने की अनुमति नहीं देता। कछुआ तालाब में ही अपने वंश की वृद्धि कर सकता है। पुण्य कमाने के लिए कछुए की रक्षा करें, हिंदू धर्म में इनकी पूजा होती है। हम असली कछुओं को मारेंगे और बाजार से नकली कछुओं को लाकर सम्मान देंगे तो कैसे भला होगा।